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Saturday, May 31, 2014





यदि वेद चार है तो वेदत्रयी क्यो कहा जाता है?
चारो वेदो मे तीन प्रकार के मंत्र है| इसीको प्रकट करने के लिये पूर्व मीमासा मे कहा गया है:-
तेपां ऋग् यत्रार्थ वशेन पाद व्यवस्था|
गीतिषु सामाख्या शेषे यजु शब्द|(पूर्वमीमांसा २/१/३५-३७)
जिनमे अर्थवश पाद व्यवस्था है वे ऋग् कहे जाते है| जो मंत्र गायन किये जाते है वे साम ओर बाकि मंत्र यजु शब्द के अंतर्गत होते है| ये तीन प्रकार के मंत्र चारो वेद मे फैले हुए है| यही बात सर्वानुक्रमणीवृत्ति की भूमिका मे " षड्गुरुशिष्य" ने कही है-
" विनियोक्तव्यरूपश्च त्रिविध: सम्प्रदर्श्यते|
ऋग् यजु: सामरूपेण मन्त्रोवेदचतुष्टये||"
अर्थात् यज्ञो मे तीन प्रकार के रूप वाले मंत्र विनियुक्त हुआ करते है|
चारो वेदो से ऋग्,यजु,साम रूप से है|
तीन प्रकार के मंत्रो के होने, अथवा वेदो मे ज्ञान,कर्म ओर उपासना तीन प्रकार के कर्तव्यो के वर्णन करने से वेदत्रयी कहे जाते है|
अर्थववेद मे एक जगह कहा गया है-
"विद्याश्चवा त्र्प्रविद्याश्च यज्ञ्चान्यदुपदेश्यम्|
शरीरे ब्रह्म प्राविशद्दच: सामाथो यजु||" अर्थववेद ११-८-२३||
अर्थात् विद्या ओर ज्ञान +कर्म ओर जो कुछ अन्य उपदेश करने योग्य है तथा ब्रह्म (अर्थववेद) ,ऋक्, साम ओर यजु परमेश्वर के शरीर मे प्रविष्ट हुये|
व्हिटनी ने भी ब्रह्म को अर्थववेद ही कहा है| अर्थववेद की तरह ऋग्वेद मे भी चारो वेद के नाम है-
"सो अड्रिरोभिरड्रिरस्तमोभृदवृषा वृषभिः सखिभिः सखा सन|
ऋग्मिभिर्ऋग्मीगातुभिर्ज्येष्टो मरूत्वान्नो भवत्विन्द्रे ऊती"||ऋग्वेद १/१००/४||
अर्थात् जो अर्थर्वोगिरः मंत्रो से उत्तम रीति से युक्त है, जो सुख की वर्षा के साधनो से सुख सीचने वाला है, जो मित्रो के साथ मित्र है,जो
ऋग्वेदी के साथ ऋग्वेदी है जो साम से ज्येष्ठ होता है, वह महान इन्द्र (ईश्वर) हमारी रक्षा करे|
इस मंत्र मे अर्थववेद का स्पष्ट रीति से नाम लिया गया है जब ऋग्वेद स्वंय अर्थववेद के वेदत्व को स्वीकार करता है तो फिर अर्थववेद को नया बतलाकर वेद की सीमा से दूर करना मुर्खतामात्र है|

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INDIA-RUSSIA, India
Researcher of Yog-Tantra with the help of Mercury. Working since 1988 in this field.Have own library n a good collection of mysterious things. you can send me e-mail at alon291@yahoo.com Занимаюсь изучением Тантра,йоги с помощью Меркурий. В этой области работаю с 1988 года. За это время собрал внушительную библиотеку и коллекцию магических вещей. Всегда рад общению: alon291@yahoo.com